खामोशी है चारों ओर
खामोश हूँ मैं भी
सब कुछ होता देख
शान्त हूँ मैं भी
खामोशी है अनजानी सी
खामोशी है तूफानी सी
देख रहा मैं खामोशी को
करता एक तमाशा
जैसे ! कर लिया हो खामोशी ने
बीड़ी सिगरेट का नशा
टूटेगी खामोशी क्या होगा
इस पल यही सोच रहा
होगी कितनी तबाही
बैठा यही गिन रहा
होगा कैसा मंजर
बैठा बैठा देख रहा
खामोशी है चारों ओर
खामोश हूँ मै भी ।।
लेखक / कवि - जीतेन्द्र मीना ' गुरदह '
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